Best Sanskrit Quotes

इस पोस्ट में आपको Best Sanskrit Quotes मिलेंगे। यहाँ पर आप संस्कृत सुविचार को हिंदी अनुवाद के साथ पढ़ सकते हैं।

Best Sanskrit Quotes

दानं भोगो नाशस्तिस्रो, गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुङ्क्ते, तस्य तृतीयागतिर्भवति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दान, भोग और नाश धन की यह तीन गतियाँ ही होती हैं।
जो न दान देता है और न भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति ही होती है॥


नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा।
शीलं च दुर्लभं तत्र विनयस्तत्र सुदुर्लभः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पृथ्वी पर मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ है, उनमें भी विद्या युक्त मनुष्य मिलना और दुर्लभ है, उनमें भी चरित्रवान मनुष्य मिलना दुर्लभ है और उनमें भी विनयी मनुष्य मिलना और दुर्लभ है॥


कुसुमस्तबकस्येव द्वयीवृत्तिर्मनस्विनः।
मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य विशीर्येत वनेऽथवा॥

-: हिंदी भावार्थ :-

फूलों की तरह मनस्वियों की दो ही गतियाँ होती हैं; वे या तो समस्त विश्व के सिर पर शोभित होते हैं या वन में अकेले मुरझा जाते हैं॥


सज्जनस्य हृदयं नवनीतं यद्वदन्ति कवयस्तदलीकं।
अन्यदेहविलसत्परितापात् सज्जनो द्रवति नो नवनीतम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

कविगण सज्जनों के हृदय को जो नवनीत (मक्खन) के समान बताते हैं, वह भी असत्य ही है।
दूसरे के शरीर में उत्पन्न ताप (दुःख) से सज्जन तो पिघल जाते हैं पर मक्खन नहीं पिघलता॥


आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः।
आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सदाचरण सबसे बड़ा धर्म है, सदाचरण सबसे बड़ा तप है, सदाचरण सबसे बड़ा ज्ञान है, सदाचरण से क्या प्राप्त नहीं किया जा सकता है?


न प्रहॄष्यति सन्माने नापमाने च कुप्यति।
न क्रुद्ध: परूषं ब्रूयात् स वै साधूत्तम: स्मॄत:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो सम्मान करने पर हर्षित न हों और अपमान करने पर क्रोध न करें, क्रोधित होने पर कठोर वचन न बोलें, उनको ही सज्जनों में श्रेष्ठ कहा गया है॥


पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभूतयः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, बादल अपने बरसाए पानी द्वारा उगाया हुआ अनाज स्वयं नहीं खाते।
सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है।


नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः।
गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मनुष्य का आभूषण रूप, रूप का आभूषण गुण, गुणों का आभूषण ज्ञान और ज्ञान का आभूषण क्षमा है॥


अमॄतं चैव मॄत्युश्च द्वयं देहप्रतिष्ठितम्।
मोहादापद्यते मॄत्यु: सत्येनापद्यतेऽमॄतम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अमरता और मॄत्यु दोनों एक ही शरीर में निवास करती हैं, मोह से मॄत्यु प्राप्त होती है और सत्य से अमरत्व॥


सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सत्य मेरी माता, ज्ञान मेरा पिता, धर्म मेरा भाई, दया मेरी मित्र, शांति मेरी पत्नी, क्षमा मेरा पुत्र है।
यह छः मेरे सम्बन्धी हैं॥


Best Sanskrit Quotes

क्रोधमूलो मनस्तापः क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात्क्रोधं परित्यज॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्रोध मन के दुःख का प्राथमिक कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है, इसलिए क्रोध को त्याग दें॥


मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्।
मनस्यन्यत् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

महापुरुषों के मन, वचन और कर्म में समानता पाई जाती है पर दुष्ट व्यक्ति सोचते कुछ और हैं, बोलते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं॥


जलबिन्दुनिपातेन, क्रमशः पूर्यते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां, धर्मस्य च धनस्य च॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पानी की बूंदों के गिरने से घड़ा धीरे-धीरे भर जाता है।
ऐसा ही सभी विद्याओं, धर्म और धन के साथ है॥


परवाच्येषु निपुण: सर्वो भवति सर्वदा।
आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्मति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दूसरों के बारे में बोलने में सभी हमेशा ही कुशल होते हैं पर अपने बारे में नहीं जानते हैं, यदि जानते भी हैं तो गलत ही॥


एकवर्णं यथा दुग्धं भिन्नवर्णासु धेनुषु।
तथैव धर्मवैचित्र्यं तत्त्वमेकं परं स्मॄतम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिस प्रकार अनेक रंगों की गायें एक रंग का ही (श्वेत) दूध देती हैं, उसी प्रकार विभिन्न धर्मों में एकही परम तत्त्व का उपदेश दिया गया है॥


नात्युच्चशिखरो मेरुर्- नातिनीचं रसातलम्।
व्यवसायद्वितीयानां नात्यपारो महोदधि:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

परिश्रमी व्यक्ति के लिए मेरु पर्वत अधिक ऊँचा नहीं है, पाताल बहुत नीचा नहीं है और महासागर बहुत विशाल नहीं है॥


विवेक: सह संपत्या विनयो विद्यया सह।
प्रभुत्वं प्रश्रयोपेतं चिन्हमेतन्महात्मनाम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

संपत्ति के साथ विवेक, विद्या के साथ विनय और शक्ति के साथ दूसरों की सुरक्षा, ये महापुरुषों के लक्षण हैं॥


षड् दोषा: पुरूषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सम्पन्न होने की इच्छा वाले मनुष्य को इन छः बुरी आदतों को त्याग देना चाहिए – (अधिक) नींद, जड़ता, भय, क्रोध, आलस्य और कार्यों को टालने की प्रवृत्ति॥


अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्राणत्यागेऽपि संस्थिते।
न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

न करने योग्य कार्य को प्राण जाने की परिस्थिति में भी नहीं करना चाहिए और कर्त्तव्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए, यह सनातन धर्म है॥


क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोधः संसारबन्धनम्।
धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्रोध समस्त विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है, इसलिए क्रोध को त्याग दें


Best Sanskrit Quotes

अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्ति- र्यावज्जीवं च विद्यया॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अन्न दान परम दान है, अतः विद्या दान उससे भी बड़ा है क्योंकि अन्न से क्षण भर की तृप्ति होती है और विद्या से आजीवन॥


षड् गुणा: पुरुषेणेह त्यक्तव्या न कदाचन।
सत्यं दानम् अनालस्यम् अनसूया क्षमा धॄति:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस छःगुणों को व्यक्ति को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए – सत्य, दान, तत्परता, दूसरों में दोष न देखने की प्रवृत्ति, क्षमा और धैर्य॥


अक्षरद्वयम् अभ्यस्तं नास्ति नास्ति इति यत् पुरा।
तद् इदं देहि देहि इति विपरीतम् उपस्थितम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पूर्व में गरीबों के प्रति किये गए ‘नहीं है’ नहीं है’ से मनुष्य भविष्य में मांगने की स्थिति की प्राप्त होता है॥


क्रोध: सुदुर्जय: शत्रु: लोभो व्याधिरनन्तक:।
सर्वभूतहित: साधु: असाधुर्निदय: स्मॄत:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्रोध को मनुष्य का जीतने में कठिन शत्रु कहा गया है, लोभ कभी न ख़त्म होने वाला रोग कहा गया है।
साधु पुरुष वह है जो दूसरों के कल्याण में लगा हुआ है और असाधु वह है जो दया से रहित है


विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है॥


यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का आश्रय लेते हैं, उनका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिश्चित तो लगभग नष्ट के समान है ही॥


न हि ज्ञानसमं लोके पवित्रं चान्यसाधनं।
विज्ञानं सर्वलोकानामु- त्कर्षाय स्मृतं खलु॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस लोक में ज्ञान के समान पवित्र दूसरा कोई साधन नहीं है, शास्त्रों में विज्ञान को समस्त लोकों की प्रगति के लिए निश्चित किया गया है॥


अकिञ्चनस्य दान्तस्य शान्तस्य समचेतसः।
मया सन्तुष्तमानसः सर्वाः सुखमया दिशाः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

कुछ न रखने वाले, नियंत्रित, शांत, समान चित्त वाले, मन से संतुष्ट मनुष्य के लिए सभी दिशाएं सुखमय हैं॥


गौरवं प्राप्यते दानात्, न तु वित्तस्य संचयात्।
स्थिति: उच्चै: पयोदानां, पयोधीनां अध: स्थिति:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धन के दान से ही प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, धन के संचय से नहीं।
बादलों का स्थान ऊपर है और समुद्र का नीचे॥


जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यम् मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिम् सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मन की जड़ता का नाश करती है, वाणी को सत्य से सींचती है, सम्मान और उन्नति की दिशा दिखाती है, पापों को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न करती है, यश का दिशाओं में विस्तार करती है, कहो सज्जनों की संगति मनुष्य का क्या भला नहीं करती॥


Best Sanskrit Quotes

मातॄवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्।
आत्मवत्सर्वभूतेषु य: पश्यति स पश्यति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, दूसरों के धन को मिट्टी के समान, समस्त प्राणियों को अपने समान जो देखता है, वह (वास्तविक रूप में ) देखता है॥


न धैर्येण विना लक्ष्मी- र्न शौर्येण विना जयः।
न ज्ञानेन विना मोक्षो न दानेन विना यशः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धैर्य के बिना धन, वीरता के बिना विजय, ज्ञान के बिना मोक्ष और दान के बिना यश प्राप्त नहीं होता है॥


न तु अहं कामये राज्यं न स्वर्गं न अपुनर्भवम्।
कामये दु:खतप्तानां प्राणिनाम् आर्तिनाशनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

न मैं राज्य की इच्छा रखता हूँ, न स्वर्ग या मोक्ष की ही, मेरी तो यही अभिलाषा है कि दुःख से पीड़ित सभी प्राणियों के दुःख का नाश हो जाये॥


मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः।
पङ्कच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

बुद्धिमानों के साथ से मंद व्यक्ति भी बुद्धि प्राप्त कर लेते हैं जैसे रीठे के फल से उपचारित गन्दा पानी भी स्वच्छ हो जाता है॥


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सभी सुखी हों, सभी रोगरहित हों, सभी कल्याण को देखें और कोई भी दुःख का भागी न हो॥


मनसा चिन्तितंकार्यं वचसा न प्रकाशयेत्।
अन्यलक्षितकार्यस्य यत: सिद्धिर्न जायते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मन से सोचे हुए कार्य को वाणी से न बताए क्योंकि जिस कार्य पर किसी और की दृष्टि लग जाती है, वह फिर पूरा नहीं होता॥


केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः न स्नानं न विलोपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता र्धायते क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं।
केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी सुन्दर प्रकार से शोभा बढ़ाती है।
साधारण आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही सनातन आभूषण है॥


मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणं चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणं।
मित्रं विना नास्ति शरीर तोषणं विद्यां विना नास्ति शरीरभूषणं॥

-: हिंदी भावार्थ :-

संतुलित जीवन के समान शरीर का पोषण करने वाला दूसरा नहीं है, चिंता के समान शरीर को सुखाने वाला दूसरा नहीं है, मित्र के समान शरीर को आनंद देने वाला दूसरा नहीं है और विद्या के समान शरीर का दूसरा कोई आभूषण नहीं है॥


अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अट्ठारह पुराणों में श्रीव्यास के दो वचन (प्रमुख) हैं – परोपकार से पुण्य होता है और पर-पीड़ा से पाप॥


अस्थिरं जीवितं लोके अस्थिरे धनयौवने।
अस्थिरा: पुत्रदाराश्र्च धर्मकीर्तिद्वयं स्थिरम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस जगत में जीवन सदा न रहने वाला है, धन और यौवन भी सदा न रहने वाले हैं, पुत्र और स्त्री भी सदा न रहने वाले हैं।
केवल धर्म और कीर्ति ही सदा रहने वाले हैं॥


Best Sanskrit Quotes

नमन्ति फलिता वृक्षा नमन्ति च बुधा जनाः।
शुष्ककाष्ठानि मूर्खाश्च भिद्यन्ते न नमन्ति च॥

-: हिंदी भावार्थ :-

फले हुए वृक्ष झुक जाते हैं और बुद्धिमान लोग विनम्र हो जाते हैं पर सूखी लकड़ी और मूर्ख काटने पर भी नहीं झुकते॥


प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो देवोऽपि तं लङ्घयितुं न शक्तः।
तस्मान्न शोचामि न विस्मयो मे यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मनुष्य को जो प्राप्त होना होता है, उसका उल्लंघन करने में देवता भी समर्थ नहीं हैं इसलिए मुझे न आश्चर्य है और न शोक क्योंकि जो मेरा है वह किसी दूसरे का नहीं है॥


शोकस्थानसहस्राणि, भयस्थानशतानि च।
दिवसे दिवसे मूढम्, आविशन्ति न पण्डितम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दुःख के हजारों कारण हैं, भय के भी सौ कारण हैं, ये दिन-प्रतिदिन मूर्खों को ही चिंतित करते हैं, बुद्धिमानों को नहीं॥


मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् ।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं, लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं, उन परम आनंद स्वरुप श्रीमाधव की मैं वंदना करता हूँ॥


न अन्नोदकसमं दानं न तिथि द्वादशीसमा।
न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातु: परदैवतम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अन्न और जल के समान दान नहीं है, द्वादशी से समान तिथि नहीं है, गायत्री से बड़ा मंत्र नहीं है और माता से बड़ा देवता नहीं है॥


शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सभी पर्वतों में मणियाँ नहीं होतीं, सभी हाथियों के मस्तक मेंमोती नहीं होते, साधु पुरुष सभी स्थानों में नहीं मिलते औरचन्दन सभी वनों में नहीं पाया जाता है॥


सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणम् गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

किसी भी कार्य को एकाएक शुरू नहीं करना चाहिए , बिना सोचे विचारे कार्य करना बड़ी परेशानी का कारण होता है।
संपत्ति भली भांति विचार करके कार्य करने वाले के गुणों से प्रसन्न होकर स्वयं उसका वरण करती है॥


विरला जानन्ति गुणान् विरला: कुर्वन्ति निर्धने स्नेहम्।
विरला: परकार्यरता: परदु:खेनापि दु:खिता विरला:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

कोई कोई ही दूसरों के गुणों को जानते हैं, कोई कोई ही गरीबों से स्नेह रखते हैं, कोई कोई दूसरों की सहायता करते हैं और कोई कोई ही दूसरों के दुःख से दुखी होते हैं॥


सतां हि दर्शनं पुण्यं तीर्थभूताश्च सज्जनाः।
कालेन फलते तीर्थम् सद्यः सज्जनसङ्गतिः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सज्जनों के दर्शन से पुण्य होता है, सज्जन जीवित तीर्थ हैं, तीर्थ तो समय आने पर ही फल देते हैं, सज्जनों का साथ तो तुरंत फलदायी होता है॥


तत् कर्म यत् न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्याशिल्पनैपुणम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वह कर्म है जो बंधन में न डाले, वह विद्या है जो मुक्त कर दे।
अन्य कर्म श्रम मात्र हैं और अन्य विद्याएँ यांत्रिक निपुणता मात्र हैं॥


Best Sanskrit Quotes

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता-जाता रहता है।
धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता पर चरित्र के नष्ट हो जाने से वह मरे हुए के समान है॥


आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।
सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आकाश से गिरा हुआ पानी जैसे समुद्र में जाता है, उसी प्रकार किसी भी देवता को किया गया नमस्कार श्रीहरि (श्रीकृष्ण) को जाता है॥


काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।
व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥

-: हिंदी भावार्थ :-

बुद्धिमानों का समय काव्य और शास्त्र से आनंद प्राप्त करने में व्यतीत होता है, जबकि मूर्खों का समय व्यसन, नींद और कलह में व्यतीत होता है॥


प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने किं दरिद्रता॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रिय वाक्य बोलने से सभी प्रसन्न होते हैं इसलिए प्रिय ही बोलना चाहिए, बोलने में क्या दरिद्रता?


सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
कुतस्तद्धनलुब्धानां एतश्चेतश्च धावताम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

संतोष रूपी अमृत से तृप्त शांत मन वालों का सुख उन लोभियों को कैसे मिल सकता है जो धन के पीछे अचेत होकर भागते फिरते हैं॥


सत्यानुसारिणी लक्ष्मीः कीर्तिस्त्यागानुसारिणी।
अभ्याससारिणी विद्या बुद्धिः कर्मानुसारिणी॥

-: हिंदी भावार्थ :-

लक्ष्मी सत्य का अनुसरण करती हैं, कीर्ति त्याग का अनुसरण करती है, विद्या अभ्यास का अनुसरण करती है और बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है॥


सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते यथान्धकारादिव दीपदर्शनम्।
सुखात्तु यो याति दशां दरिद्रतां धृतः शरीरेण मृतः स जीवति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दुःख का अनुभव करने के बाद ही सुख का अनुभव शोभा देता है जैसे कि घने अँधेरे से निकलने के बाद दीपक का दर्शन अच्छा लगता है।॥ सुख से रहने के बाद जो मनुष्य दरिद्र हो जाता है, वह शरीर रख कर भी मृतक जैसे ही जीवित रहता है॥


मृगा मृगैः संगमुपव्रजन्ति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरंगैः।
मूर्खाश्च मूर्खैः सुधयः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु सख्यं॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मृग मृगों के साथ, गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूर्खों के साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ रहते हैं; समान आचरण और आदतों वालों में ही मित्रता होती है॥


सप्तैतानि न पूर्यन्ते पूर्यमाणान्यनेकशः।
स्वामी पयोधिरुदरं कृपणोऽग्निर्यमो गृहम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

ये सात कभी पूरे नहीं होते और पूरे करने पर बढकर अनेक हो जाते हैं – मालिक, समुद्र, पेट, कंजूस, अग्नि, मृत्यु और घर॥


विद्या विवादाय धनं मदाय खलस्य शक्तिः परपीडनाय।
साधोस्तु सर्वं विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन अहंकार के लिए और शक्ति दूसरों को कष्ट देने के लिए होती है इसके विपरीत सज्जनों की विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है॥


Best Sanskrit Quotes

दानेन तुल्यं सुहृदास्ति नान्यो लोभाच्च नान्योऽस्ति रिपुः पृथिव्याम्।
विभूषणं शीलसमं न चान्यत् सन्तोषतुल्यं धनमस्ति नान्यत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दान के समान अन्य कोई सुहृद नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है।
शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है॥


श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा:।
वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्रद्धा और भक्ति से समान रूप से युक्त, अन्य कार्यों की इच्छा न रखने वाले, कम और सुन्दर बोलने वाले, श्रोता ही पुण्यवान हैं॥


शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रॄतम्।
शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु॥

-: हिंदी भावार्थ :-

शोक धैर्य का नाश करता है, शोक स्मृति का नाश करता है, शोक सबका नाश करता है, शोक के समान दूसरा शत्रु नहीं है॥


परिवर्तिनि संसारे मॄत: को वा न जायते।
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस बदलते संसार में कौन ऐसा है जो जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ है।
जन्म लेना उसका ही सफल है जिससे उसका वंश उन्नति को प्राप्त हो॥


शरदि न वर्षति गर्जति, वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ:।
नीचो वदति न कुरुते, न वदति सुजन: करोत्येव॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पतझड़ के बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं; वर्षा ऋतु के मेघ चुपचाप (बिना गरजे) वर्षा करते हैं।
दुष्ट लोग कहते हैं पर करते नहीं, सज्जन कार्य करते हैं पर कहते नहीं॥


दातव्यं भोक्तव्यं धनविषये सञ्चयो न कर्तव्यः।
पश्येह मधुकरीणां सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धन के सम्बन्ध में दान देना और भोग करना ही उचित है, धन का संचय नहीं करना चाहिए।
देखिये, मधु- मक्खियों का संचित किया हुआ शहद कोई और ही ले जाता है॥


पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढैः पाषाणखण्डेषु, रत्नसंज्ञा विधीयते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पृथ्वी पर तीन रत्न हैं – जल, अन्न और सुन्दर वचन।
मूर्खों ने ही पत्थर के टुकड़ों (हीरे आदि)को रत्न का नाम दिया हुआ है॥


सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित:।
अर्धेन कुरुते कार्यं सर्वनाशो हि दु:सह:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सर्वनाश की स्थिति उत्पन्न होने पर बुद्धिमान आधे का त्याग कर देते हैं और आधे से ही कार्य करते हैं।
सर्वनाश असहनीय है॥


ये केचिद् दु:खिता लोके सर्वे ते स्वसुखेच्छया।
ये केचित् सुखिता लोके सर्वे तेऽन्यसुखेच्छया॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस संसार में जो कोई भी दुखी हैं वे अपने सुख की इच्छा से ही दुखी हैं और इस संसार में जो कोई भी सुखी हैं वे दूसरों के सुख की इच्छा से ही सुखी हैं॥


प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः।
विघ्नैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

निम्न श्रेणी के पुरुष विघ्नों के भय से किसी नये कार्य का आरंभ ही नहीं करते।
मध्यम श्रेणी के पुरुष कार्य तो आरंभ कर देते हैं पर विघ्नों से विचलित होकर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं, परन्तु उत्तम श्रेणी के पुरुष बार-बार विघ्न आने पर भी प्रारंभ किये गये कार्य को पूर्ण किये बिना नहीं छोड़ते हैं॥


आचाराल्लभते ह्यायु: आचारादीप्सिता: प्रजा:।
आचाराद्धनमक्षयम् आचारो हन्त्यलक्षणम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सदाचार से आयु की प्राप्ति होती है, सदाचार से अभिलषित संतान की प्राप्ति होती है, सदाचार से कभी न नष्ट होने वाले धन की प्राप्ति होती है, सदाचार से बुरी आदतों का नाश होता है॥


अर्थनाशं मनस्तापम्, गृहे दुश्चरितानि च।
वञ्चनं चापमानं च, मतिमान्न प्रकाशयेत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

बुद्धिमान धन के नाश, मन के दुःख और घर की कलह, धोखे और अपमान को गुप्त रक्खे, किसी को न बताए॥


निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः स्थिरा भवतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

नीति में निपुण मनुष्य चाहे निंदा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी आयें या इच्छानुसार चली जायें, आज ही मृत्यु हो जाए या युगों के बाद हो परन्तु धैर्यवान मनुष्य कभी भी न्याय के मार्ग से अपने कदम नहीं हटाते हैं॥


यदा न कुरूते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्।
समदॄष्टेस्तदा पुंस: सर्वा: सुखमया दिश:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जब मनुष्य किसी भी जीव के प्रति अकल्याणकारी भावना नहीं रखता है तब उस समदृष्टि पुरुष के लिए सभी दिशाएं सुख देने वाली हो जाती हैं॥


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जहाँ पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
जहाँ पर ऐसा नहीं होता है वहां पर सभी कार्य निष्फल होते हैं॥


अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रोऽर्थकारी च विद्या षड्‌ जीवलोकस्य सुखानि राजन्‌॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे महाराज. धन की आय, नित्य आरोग्य, प्रिय और मधुर बोलने वाली पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र और धन देने वाली विद्या, यह इस पृथ्वी के छः सुख कहे गए हैं॥


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