Sanskrit Quotes with Hindi Meaning

इस पोस्ट में आपको संस्कृत भाषा में सुविचार हिंदी अर्थ (Sanskrit Quotes with Hindi Meaning) के साथ पढ़ने को मिलेंगे।

Sanskrit Quotes with Hindi Meaning

नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥

-: हिंदी भावार्थ :-

कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं का राजा बन जाता है ॥


अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च।
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं – बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता॥


गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ॥


अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना:।
यत् सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अनेक शास्त्र हैं, बहुत जानने को है और समय कम है और बहुत विघ्न हैं।
अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए जैसे हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है॥


जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा, मॄत्यु: प्राणान्, धर्मचर्यामसूया।
क्रोध: श्रियं, शीलमनार्यसेवा, ह्रियं काम:, सर्वमेवाभिमान:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वृद्धावस्था सुन्दरता का, धैर्य इच्छाओं का, मृत्यु प्राणों का, धर्मं का आचरण अपवित्रता का, क्रोध प्रतिष्ठा का, चरित्र बुरी संगति का, लज्जा काम का और अभिमान सबका नाश कर देता है॥


अर्थानाम् अर्जने दु:खम् अर्जितानां च रक्षणे।
आये दु:खं व्यये दु:खं धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धन के कमाने में दुःख है, कमाने के बाद धन के संरक्षण में दुःख है, आय में दुःख है, व्यय में दुःख है, कष्ट के आश्रय धन को धिक्कार है॥


दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा।
यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है॥


दूरस्थोऽपि न दूरस्थो, यो यस्य मनसि स्थित:।
यो यस्य हॄदये नास्ति, समीपस्थोऽपि दूरत:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो जिसके मन में बसता है वह उससे दूर होकर भी दूर नहीं होता और जिससे मन से सम्बन्ध नहीं होता वह पास होकर भी दूर ही होता है॥


नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः।
अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ॥


यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति।
तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनी दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ॥


संस्कृत सुविचार विथ हिंदी मीनिंग

प्रदोषे दीपकश्चंद्र: प्रभाते दीपको रवि:।
त्रैलोक्ये दीपको धर्म: सुपुत्र: कुलदीपक:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

शाम को चन्द्रमा प्रकाशित करता है, दिन को सूर्य प्रकाशित करता है, तीनों लोकों को धर्म प्रकाशित करता है और सुपुत्र पूरे कुल को प्रकाशित करता है॥


क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है॥


विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गॄहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मॄतस्य च॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रवास (घर से दूर निवास) में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोग में औषधि मित्र होती है और मृतक का मित्र धर्म होता है ॥


आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते।
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आयु का एक क्षण भी सारे रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इसको व्यर्थ में नष्ट कर देना महान असावधानी है॥


सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम्।
सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए।
सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्यार्थी के लिए सुख कहाँ॥


सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पराधीन के लिए सर्वत्र दुःख है और स्वाधीन के लिए सर्वत्र सुख।
यह संक्षेप में सुख और दुःख के लक्षण हैं॥


यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्।
तथा पूर्वकॄतं कर्म कर्तारमनुगच्छत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिस प्रकार एक बछड़ा हजार गायों के बीच में अपनी माँ को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व में किये गए कर्म कर्ता का अनुसरण करते हैं॥


महाजनस्य संसर्गः, कस्य नोन्नतिकारकः।
पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है।


उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥

-: हिंदी भावार्थ :-

उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥


नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:।
नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है॥


Sanskrit Quotes with Hindi Meaning

चिता चिंता समाप्रोक्ता बिंदुमात्रं विशेषता।
सजीवं दहते चिंता निर्जीवं दहते चिता॥

-: हिंदी भावार्थ :-

चिता और चिंता समान कही गयी हैं पर उसमें भी चिंता में एक बिंदु की विशेषता है; चिता तो मरे हुए को ही जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को॥


अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे लक्ष्मण! सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती है।
माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं॥


पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं।
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनं॥

-: हिंदी भावार्थ :-

पुस्तक में लिखी हुई विद्या, दूसरे के हाथ में गया हुआ धन, जरुरत पड़ने पर काम नहीं आते हैं।


दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं – मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ॥


ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मॄत्योर्मा अमॄतं गमय।

-: हिंदी भावार्थ :-

हे प्रभु! असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर मेरी गति हो ।


विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है॥


व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है।
निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं॥


अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए।
अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥


विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:।
परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है॥


सा विद्या या विमुक्तये।

-: हिंदी भावार्थ :-

ज्ञान वह है जो मुक्त कर दे।


Sanskrit Quotes with Hindi Meaning

लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च।
लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

लोभ पाप और सभी संकटों का मूल कारण है, लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है॥


पातितोऽपि कराघातै- रुत्पतत्येव कन्दुकः।
प्रायेण साधुवृत्तानाम- स्थायिन्यो विपत्तयः ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है।


कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा॥

-: हिंदी भावार्थ :-

न कोई किसी का मित्र है और न शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं॥


अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आलसी के लिए विद्या कहाँ, विद्याहीन के लिए धन कहाँ, निर्धन के मित्र कहाँ और बिना मित्रों के सुख कहाँ॥


उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्।
सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है।
उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है॥


सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥


क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुघा धेनु: सन्तोषो नन्दनं वनम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान।
विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है॥


क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है॥


स हि भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला।
मनसि च परितुष्टे कोर्थवान् को दरिद्रा:॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिसकी कामनाएँ विशाल हैं, वह ही दरिद्र है।
मन से संतुष्ट रहने वाले के लिए कौन धनी है और कौन निर्धन॥


न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ॥


संस्कृत सुविचार विथ हिंदी मीनिंग

उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथै।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य, प्रविशन्ति मृगाः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।


कस्यैकान्तं सुखम् उपनतं, दु:खम् एकान्ततो वा।
नीचैर् गच्छति उपरि च, दशा चक्रनेमिक्रमेण॥

-: हिंदी भावार्थ :-

किसने केवल सुख ही देखा है और किसने केवल दुःख ही देखा है, जीवन की दशा एक चलते पहिये के घेरे की तरह है जो क्रम से ऊपर और नीचे जाता रहता है॥


दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।
यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दिन में वह करना चाहिए जिससे रात में सुख से रहा जा सके।
जब तक जीवित हैं तब तक वह करना चाहिए जिससे मरने के बाद सुख से रहा जा सके॥


मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मूर्खों के पाँच लक्षण हैं – गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥


गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा।
अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है।
इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है॥


यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं पुरूषकारेण विना दैवं न सिध्यति॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिस प्रकार एक पहिये वाले रथ की गति संभव नहीं है, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं।


धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

धर्म के दस लक्षण हैं – धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना॥


अल्पानामपि वस्तूनाम्, संहतिः कार्यसाधिका।
तॄणैर्गुणत्वमापन्नैः, बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥

-: हिंदी भावार्थ :-

छोटी वस्तुओं का मेल भी कार्य पूरा करने वाला होता है, तृण के गुण से शक्तिशाली हाथी भी बंधन को प्राप्त होता है॥


न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।


अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है – आयु, विद्या, यश और बल ॥


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