जैसा कि सभी को ज्ञात है कि पिछले कुछ दिनों से लखनऊ में विरोध प्रदर्शन हो रहा है। विरोध प्रदर्शन करने के भी सबके अपने तरीके होते हैं। कोई बस फूँककर विरोध करता है, कोई मासूमों के साथ हिंसा करके विरोध करता है तो कोई शांतिपूर्ण विरोध करता है। कोई अपने लेख के माध्यम से करता है। कोई गाकर करता है। कोई साहित्य और कविता के माध्यम से करता है।
ऐसे ही एक विरोध में एनडीटीवी वाले रवीश जी की प्राइम टाइम में कमाल खान की रिपोर्ट आप सुनिए। कमाल खान जी ने कुछ पंक्तियों के साथ बात यूँ कही –
ये क्या हुआ जो, इतनी पर्दानशीन औरतें सड़कों पर आ गई।
सदियों की घुटन, मर्दों की मर्दानिगी।
कमतर होने का एहसास, ये सब तो हमेशा से सहती थीं।
जब सियासत ने उनके वतन से वफादारी का हिसाब माँगा, तो वो बेचैन होके बाहर निकलीं।
काविश अज़ीज़ जो कि एक फोटोग्राफ़र हैं, उन्होंने अपनी बातों को निम्नलिखित नज़्म के माध्यम से सामने रखा।
तुम लगाओ हथकड़ी, तुम चलाव लाठियां।
अब मनाओ खैर तुम, निकल पड़ी हैं बेटियां।
सियासतों की आड़ में, जो जुल्म तुमने ढाए हैं।
रवायतों को तोड़कर, निकल पड़ी हैं बेटियां।
ना डर पुलिस का है इन्हें, ना वर्दियों का खौफ है।
मकान छीन लोगे तुम, दुकान छीन लोगे तुम।
तुम्हारे डर को रौंदने, निकल पड़ी है बेटियां।
लिबास में ही ढूंढते, रहोगे नाम धर्म तुम।
यहां तिरंगा ओढ़कर, निकल पड़ी हैं बेटियां।
ये देहली की शाहीनें, ये लखनऊ की ज़ीनतें।
संभालने को मोर्चा, निकल पड़ी हैं बेटियां।
लगाओ जितने लांछन, लगाना है लगा ही लो।
ये गालियां नकारकर, निकल पड़ी हैं बेटियां।
चुराके कंबलों को तुम, बिछौना छीन लेते हो।
कराके रोशनी को गुल, उजाला छीन लेते हो।
कभी हो मारते इन्हें, कभी हो कोसते इन्हें।
इन आदतों पे थूककर, निकल पड़ी हैं बेटियां।
उम्मे कुलसूम जो कि एक छात्रा हैं और लखनऊ के घण्टाघर में सीएए, एनआरसी, एनपीआर के विरोध में अपने विचारों को निम्नलिखित कविता के माध्यम से साझा कर रहीं हैं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
माथे पर बिंदी लगाती हूं, अज़ान पे सर ढक लेती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
यूपी-बिहार में साड़ी, पंजाब में सूट पहनती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
दरगाह में हाथ फैलती हूं, मंदिर में हाथ जोड़ती हूं।
भंडारे में मैंने सब्जी खाई है, लंगर में दाल-मखनी-पनीर खाई और खिलाई है।
सबीलों से शरबत भी मैं पीती हूं, गुरद्वारे में सेवा कर सवाब मैं कमाती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
रमजान में मैंने रखे रोज़े, और प्यार में करवा चौथ का व्रत भी रख लेती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
संस्कृत स्कूल में मैं पढ़ी, उर्दू की शायरी सुनती हूं।
कबीर के दोहे, प्रेमचंद की कहानियां और फ़ैज़ के शेर पढ़ती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
गायत्री मंत्र याद है मुझे, मीलाद में नात पढ़ती हूं, और गुरुबानी सुन के सुकून मिलता है।
नमाज़ में सजदा, गुरद्वारे में मत्था टेकती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
दीवाली में जलाए दिए, ईद में सेवईं खायी, लोहड़ी में किया भांगड़ा, क्रिसमस में कैंडल जलाई और होली में गुलाल लगाती हूं, रमज़ान में इफ़्तार करवाती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
मैं बड़ों के पैर छूती, झुक कर सलाम करती हूं।
मैं जामिया की चंदा यादव हूं, मैं जेएनयू की शहला राशिद भी हूं।
मैं लदीदा भी हूं, सदफ़ जाफ़र भी हूं, स्वरा भास्कर भी हूं।
हमारी एकता को भारत मां ने पल्लू में बांधा है, हिजाब सा सिर पे बिठाया है।
तुम कितना साड़ी खींचोगे मैं आदम-हव्वा की औलाद हूं, द्रौपदी सा तेज रखती हूं।
मैं हिंदुस्तान की बेटी हूं, हर रंग में मैं मिलती हूं।
सबके विचारों में भिन्नता हो सकती है, और लोगों को उनकी इच्छा के अनुसार विरोध प्रदर्शन और समर्थन करने का हक़ है, लेकिन विरोध प्रदर्शन बसों को न जलाकर इस प्रकार शांतिपूर्ण ढंग से होना चाहिए।
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