गौरा देवी- चिपको आंदोलन

गौरा देवी, वह महिला जो साहस, शक्ति और प्रकृति के प्रति प्रेम की प्रतीक थी। वह हर अन्य महिला की तरह थी लेकिन वह अपने जीवन को पर्यावरण संरक्षण में लगा दिया। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वह देवी अरण्यनी (अरण्यनी वनों और वहाँ रहने वाले जानवरों की देवी हैं) का पुनर्जन्म था। वह वास्तव में केवल अपने बेटे की माँ बल्कि अपने क्षेत्र के प्रत्येक वृक्ष के लिए माँ समान थी। उन्हें प्रमुख रूप से चिपको महिला के रूप में जाना जाता है।

कौन थी गौरा देवी

उनका जन्म 1925 में उत्तराखंड राज्य के गाँव लता के नारायण सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका परिवार पर्यावरण पर निर्भर करता था। उसकी माँ हमेशा उसे जंगलों के महत्व को बताती थीं। जो खाना पकाने के लिए ईंधन का एक स्रोत था। उसे बताया गया कि मिट्टी के कटाव को रोकने और पहाड़ों को एक साथ रखने के लिए पेड़ों की जड़ें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी माँ ने उनको बताया कि पेडों की जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकती हैं नहीं तो एक दिन उनका गांव बाढ़ में जाएगा। उनकी माँ की शिक्षाओं ने उनकी मान्यताओं को मजबूत किया जिसके कारण वह गौरा देवी के रूप में एक महान भूमिका निभाई।

गौरा देवी का निजी जीवन

गौरा देवी का निजी जीवन एक दुखद कहानी थी। वह कभी स्कूल नहीं गई और केवल अपने परिवार के पारंपरिक ऊन व्यापार में काम करते हुए बड़ी हुई। उन दिनों की पुरानी परंपराओं के अनुसार, बहुत कम उम्र में उनकी शादी हो गई थी। एक ऐसे परिवार में गई, जिसके पास कुछ जमीन थी और वह ऊन के व्यापार में भी था।

दुर्भाग्य से, 22 साल की उम्र में, गौरा देवी एक ढाई साल के बच्चे के साथ विधवा हो गई। उन्हें अपने परिवार के ऊन व्यापार व्यवसाय को संभालना पड़ा और गौरा देवी ने अपने बेटे चंद्र सिंह को अकेले पाला। लेकिन गौरा देवी अपने समुदाय द्वारा सम्मानित थी और बाद में उन्हें पंचायत का सदस्य बनने के लिए कहा गया। वह हमेशा अपने गाँव के कल्याण से जुड़े छोटे-छोटे आंदोलनों में शामिल रहती थीं। ऐसा ही एक आंदोलन था चिपको आंदोलन।

चिपको आंदोलन की शुरुआत

◆ चिपको आंदोलन की शुरुआत 1970 में हुई थी, जब गौर देवी के गांव के आसपास के जंगलों को साफ करने के आदेश दिए गए थे। गौरा देवी और उनके गाँव के पुरुषों और महिला के समूह ने जंगल की रक्षा के लिए गांधी जी के विरोध के तरीके का उपयोग करने का फैसला किया।

◆ जब अधिकारी और लकड़हारे जंगलों की ओर बढ़ने लगे। गौरा देवी को तुरंत स्थानीय महिलाओं द्वारा सूचित किया गया। उसने पुरुषों के बिना लड़ने का फैसला किया। उसने 27 अन्य महिलाओं के साथ उस दिन जंगल में मार्च किया, पेड़ों को गले लगाकर उनकी रक्षा की। जब लकड़हारे ने उन्हें वापस जाने के लिए कहा, तो वह बोली-

ये पेड़ हमारी जिंदगी हैं। पेड़ो ने हमें पूरे जीवन पोषण किया। उन्होंने हमें विपत्तियों से बचाया है। अब हमारी बारी है। इसलिए यदि आप उन्हें काटना चाहते हैं, तो आगे बढ़ें। लेकिन इन पेड़ों को काटने से पहले, आपको अपनी कुल्हाड़ियों से हम सभी को काटना होगा।

◆ लकड़हारे उन्हें डराने की कोशिश करते रहे लेकिन गौरा देवी अपनी जगह से नहीं हिली। जब ठेकेदारों ने गौरा देवी के साहस को तोड़ने के लिए बंदूक निकाली, तो गौरा देवी ने बहादुरी और दहाड़ते हुए कहा :-

हमें गोली मारो और फिर तुम पेडों काट सकते हो सभी महिलाओं ने गौरा देवी के साथ खड़े होकर पेड़ों को काटने की चेतावनी दी और पेड़ों के साथ खुद को भी काटने के लिए कहा

◆ उन्होंने श्रीगंगा के किनारे जंगल को जोड़ने वाले एक पुल को तोड़ दिया, और जंगल के हर रास्ते पर पहरा देने लगे। सरकारी अधिकारियों ने भी गौरा देवी को डराने की कोशिश की, लेकिन वह गौरा देवी का मन बदलने में नाकाम रहे। तीन दिन और तीन रात तक महिलाओं ने पेड़ों से चिपके रहे और बताया कि जंगल को बर्बाद करना मानवता के अस्तित्व को नष्ट करना है।

गौरा देवी चिपको आंदोलन

चौथे दिन जंगल काटने के लोए आये लोगों का हार मान ली और वापस लौट गए। यह गौरा देवी और उनके समूह के लिए एक महान जीत थी, जिसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है। गौरा देवी और उनके समूह की जीत ने न केवल जंगल को बचाया बल्कि पहले अखिल महिला पर्यावरण संरक्षण आंदोलन को भी जन्म दिया।

◆ कुछ समय बाद गौर देवी ने अपने बेटे को परिवार की जिम्मेदारी सौंप दी और अपने क्षेत्र की गरीबी और महिलाओं के जीवन को सुधारने के काम में जुट गई।गौरा देवी ने महिलाओं और प्रकृति की बेहतरी के संबंध में कई अभियानों का नेतृत्व किया।

गौरा देवी को प्राप्त सम्मान

◆ 1962 में, गौरा देवी को उसी के रानी गाँव में अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। 1986 में गौरा देवी को प्रथम वृक्ष मित्र पुरस्कार (first environment friendly award) पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और 30 से अधिक महिला समूहों में दशाली ग्राम स्वराज्य मंडल के अध्यक्ष के रूप में चुना गया ।

4 जुलाई 1996 को 66 वर्ष की आयु में गौरा देवी की मृत्यु हो गई। गौरा देवी का प्रकृति और पर्यावरण के प्रति प्यार समाज के लिये प्रेरणा है। गौरा देवी का पर्यावरण के लिए किए गए आंदोलन को कभी भुलाया नही जा सकता है।


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