आइए जलते हैं – डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी

आइए जलते हैं, डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी द्वारा लिखी गई एक कविता है। डॉ छतलानी जी ने प्रतिलिपि लघुकथा सम्मान 2018, ब्लॉगर ऑफ़ द ईयर 2019 सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त किये हैं।

इस कविता के माध्यम से डॉ छतलानी जी ने “कब जला जाए और कब नहीं” बताने का प्रयास किया है। केवल दीपक ही नहीं वरन अन्य कई वस्तुएं भी जलकर हमारे लिए लाभदायक होती हैं, उन्हें भी दर्शाने की कोशिश है। निहित संदेश यह देने का प्रयास है कि मानव और मानवता की अच्छाई हेतु खुदको कष्ट देने में कोई हर्ज नहीं लेकिन खुद को कष्ट इसलिए दें जिससे दूसरों को नुकसान हो तो ऐसे कार्य न करें।


-:- आइए जलते हैं -:-

आइए जलते हैं
दीपक की तरह।
आइए जलते हैं
अगरबत्ती-धूप की तरह।
आइए जलते हैं
धूप में तपती धरती की तरह।
आइए जलते हैं
सूरज सरीखे तारों की तरह।
आइए जलते हैं
अपने ही अग्नाशय की तरह।
आइए जलते हैं
रोटियों की तरह और चूल्हे की तरह।
आइए जलते हैं
पक रहे धान की तरह।
आइए जलते हैं
ठंडी रातों की लकड़ियों की तरह।
आइए जलते हैं
माचिस की तीली की तरह।
आइए जलते हैं
ईंधन की तरह।
आइए जलते हैं
प्रयोगशाला के बर्नर की तरह।

क्यों जलें जंगल की आग की तरह।
जलें ना कभी खेत लहलहाते बन के।
ना जले किसी के आशियाने बन के।
नहीं जलना है ज्यों जलें अरमान किसी के।
ना ही सुलगे दिल… अगर ज़िंदा है।
छोडो भी भई सिगरेट की तरह जलना!
नहीं जलना है
ज्यों जलते टायर-प्लास्टिक।
क्यों बनें जलता कूड़ा?

आइए जल के कोयले सा हो जाते हैं
किसी बाती की तरह।


उम्मीद है कि आपको आइए जलते हैं कविता पसंद आयी होगी। इस कविता के लेखक डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी जी हैं, जिन्होंने कंप्यूटर विज्ञान में पीएच.डी. की डिग्री हासिल की हुई है।

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