गीता सत्रहवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 17 with Hindi and English Translation

गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् ।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥१७-१५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यथार्थ भाषण है (मन और इन्द्रियों द्वारा जैसा अनुभव किया हो, ठीक वैसा ही कहने का नाम ‘यथार्थ भाषण’ है।) तथा जो वेद-शास्त्रों के पठन का एवं परमेश्वर के नाम-जप का अभ्यास है- वही वाणी-सम्बन्धी तप कहा जाता है॥15॥

-: English Meaning :-

The speech which causes no excitement and is true, as also pleasant and beneficial and also the practice of sacred recitation, are said to form the austerity of speech.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥१७-१६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मन की प्रसन्नता, शान्तभाव, भगवच्चिन्तन करने का स्वभाव, मन का निग्रह और अन्तःकरण के भावों की भलीभाँति पवित्रता, इस प्रकार यह मन सम्बन्धी तप कहा जाता है॥16॥

-: English Meaning :-

Serenity of mind, good-heartedness, silence, self-control, purity of nature – this is called the mental austerity.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

श्रद्धया परया तप्तं तपस् तत्त्रिविधं नरैः ।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते ॥१७-१७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किए हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते हैं॥17॥

-: English Meaning :-

This threefold austerity, practiced by devout men with utmost faith, desiring no fruit, they call Sattvic.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत् ।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम् ॥१७-१८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो तप सत्कार, मान और पूजा के लिए तथा अन्य किसी स्वार्थ के लिए भी स्वभाव से या पाखण्ड से किया जाता है, वह अनिश्चित (‘अनिश्चित फलवाला’ उसको कहते हैं कि जिसका फल होने न होने में शंका हो।) एवं क्षणिक फलवाला तप यहाँ राजस कहा गया है॥18॥

-: English Meaning :-

That austerity which is practiced with the object of gaining good reception, honor and worship and with hypocrisy, is said to be of this world, to be Rajasic, unstable and uncertain.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः ।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ॥१७-१९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है- वह तप तामस कहा गया है॥19॥

-: English Meaning :-

The austerity which is practiced out of a foolish notion, with self-torture, or for the purpose of ruining another, is declared to be Tamasic.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥१७-२०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश तथा काल (जिस देश-काल में जिस वस्तु का अभाव हो, वही देश-काल, उस वस्तु द्वारा प्राणियों की सेवा करने के लिए योग्य समझा जाता है।) और पात्र के (भूखे, अनाथ, दुःखी, रोगी और असमर्थ तथा भिक्षुक आदि तो अन्न, वस्त्र और ओषधि एवं जिस वस्तु का जिसके पास अभाव हो, उस वस्तु द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं और श्रेष्ठ आचरणों वाले विद्वान्‌ ब्राह्मणजन धनादि सब प्रकार के पदार्थों द्वारा सेवा करने के लिए योग्य पात्र समझे जाते हैं।) प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है॥20॥

-: English Meaning :-

That gift which is given – knowing it to be a duty to give – to one who does no service, in place and in time and to a worthy person, that gift is held Sattvic.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः ।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ॥१७-२१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

किन्तु जो दान क्लेशपूर्वक (जैसे प्रायः वर्तमान समय के चन्दे-चिट्ठे आदि में धन दिया जाता है।) तथा प्रत्युपकार के प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में (अर्थात्‌ मान बड़ाई, प्रतिष्ठा और स्वर्गादि की प्राप्ति के लिए अथवा रोगादि की निवृत्ति के लिए।) रखकर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है॥21॥

-: English Meaning :-

And that gift which is given with a view to a return of the good, or looking for the fruit, or reluctantly, that gift is held to be Rajasic.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

अदेशकाले यद्दानम पात्रेभ्यश्च दीयते ।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ॥१७-२२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो दान बिना सत्कार के अथवा तिरस्कारपूर्वक अयोग्य देश-काल में और कुपात्र के प्रति दिया जाता है, वह दान तामस कहा गया है॥22॥

-: English Meaning :-

The gift that is given at a wrong place or time, to unworthy persons, without respect or with insult, that is declared to be Tamasic.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

ॐतत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः ।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा ॥१७-२३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

ॐ, तत्‌, सत्‌-ऐसे यह तीन प्रकार का सच्चिदानन्दघन ब्रह्म का नाम कहा है, उसी से सृष्टि के आदिकाल में ब्राह्मण और वेद तथा यज्ञादि रचे गए॥23॥

-: English Meaning :-

OM, TAT, SAT : this has been taught to be the triple designation of Brahman. By that were created of old the Brahmanas and the Vedas and the sacrifices.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम् ॥१७-२४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इसलिए वेद-मन्त्रों का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुषों की शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएँ सदा ‘ॐ’ इस परमात्मा के नाम को उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं॥24॥

-: English Meaning :-

Therefore, with the utterance of ‘Om’, are the acts of sacrifice, gift and austerity, as enjoined in the scriptures, always begun by the students of Brahman.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतपःक्रियाः ।
दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः ॥१७-२५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

तत्‌ अर्थात्‌ ‘तत्‌’ नाम से कहे जाने वाले परमात्मा का ही यह सब है- इस भाव से फल को न चाहकर नाना प्रकार के यज्ञ, तपरूप क्रियाएँ तथा दानरूप क्रियाएँ कल्याण की इच्छा वाले पुरुषों द्वारा की जाती हैं॥25॥

-: English Meaning :-

With ‘Tat’, without aiming at the fruits, are the acts of sacrifice and austerity and the various acts of gift performed by the seekers of moksha.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥१७-२६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सत्‌’- इस प्रकार यह परमात्मा का नाम सत्यभाव में और श्रेष्ठभाव में प्रयोग किया जाता है तथा हे पार्थ! उत्तम कर्म में भी ‘सत्‌’ शब्द का प्रयोग किया जाता है॥26॥

-: English Meaning :-

The word ‘Sat’ is used in the sense of reality and of goodness; and so also, O Partha, the word ‘Sat’ is used in the sense of an auspicious act.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते ।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते ॥१७-२७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी ‘सत्‌’ इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिए किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्‌-ऐसे कहा जाता है॥27॥

-: English Meaning :-

Devotion to sacrifice, austerity and gift is also spoken of as ‘Sat’; and even action in connection with these is called ‘Sat’.


गीता सत्रहवाँ अध्याय श्लोक –

अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस् तप्तं कृतं च यत् ।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह ॥१७-२८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे अर्जुन! बिना श्रद्धा के किया हुआ हवन, दिया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म है- वह समस्त ‘असत्‌’- इस प्रकार कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस लोक में लाभदायक है और न मरने के बाद ही॥28॥

-: English Meaning :-

Whatever is sacrificed, given, or done and whatever austerity is practiced, without faith, it is called ‘asat’, O Partha; it is naught here or here-after.


गीता सोलहवाँ अध्याय अर्थ सहित

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