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राधेपुर गांव में गुरु माधव दास की कुटिया थी और उनके अनेक शिष्य थे। ” जिस प्रकार माता को अपने पुत्र से स्नेह रहता है ठीक उसी प्रकार गुरु को अपने शिष्यों से स्नेह था। “

उन्ही शिष्यों में से उनका एक शिष्य था सोहन। उसकी एक आदत बहुत ही अच्छी थी  कि गुरु माधव कही से थके हुए आते थे, तो सबसे पहले वही  उनकी थकी हुई काया का उचित ध्यान देता था।

परन्तु बाकी के कामों में वह बहुत ही आलसी था।वह कोई भी कार्य करने से बहुत ही जी चुराता था। सोहन का यह स्वभाव देखकर गुरु जी सोहन के भविष्य को लेकर आशंकित थे। गुरूजी सोहन के स्वभाव को स्मरण करके उसके प्रति कोई कठोर प्रयास नहीं कर पाते।

गुरु जी ने सोचा, ” हमें सोहन को जीवन समर में विजेता बनाने के लिए अवश्य ही कुछ करना होगा। ” उसके बाद उन्होंने अपने मन में कुछ निर्णय किया और फिर गुरु जी ने सोहन को अपने पास बुलाया।

पास आने पर गुरु जी ने कहा, ”  वत्स मैं सभी शिष्यों के साथ चार दिन के लिए कही जा रहा हूँ और इस आश्रम का दायित्व तुम्हारे उपर है। विशेष कर इन फूलों की श्रृंखलाओं को विशेष रक्षण की आवश्यकता है। “

सोहन ने कहा, ” ठीक है गुरुजी।  मैं कोशिस करुंगा।  “

उसके बाद सोहन ने सोचा, ” गुरुजी चार दिनों में आने वाले है तब तक मैं अपने परिश्रम का व्यर्थ में क्यों अपव्यय करुं ? गुरु जी के आने से पहले ही मैं यहाँ का सारा वातावरण परिवर्तित कर दूंगा, यही सोचकर वह चारपाई तोड़ता रहा। “

गुरुजी के आने का समय नजदीक आ गया था, सोहन ने अधूरा प्रयास करना शुरु किया लेकिन ” क्या  वर्षा जब कृषि सुखानी ” वाली कहावत चरितार्थ हो गई। फलतः पुष्प की क्यारियों के साथ उसके वृक्षों की दयनीय हालत हो चुकी थी।

नियत समय पर गुरुजी का आश्रम में अपने शिष्यों के साथ पदार्पण हो चुका था। सोहन अपने पूर्व स्वभाव वस गुरु के साथ साथ गुरु भाइयों के स्वागत में प्रस्तुत था।

यात्राश्रम से निवृत्त होने के उपरांत गुरु जी आश्रम और पुष्प वृक्षों की दुर्दशा देखी तो उनका ह्रदय द्रवित हो उठा। यह सब देख उन्होंने सोहन को बुलाया और पूछा, ” क्या हमारी अनुपस्थिति में तुमने आश्रम और पुष्प वृक्षों की उचित देखभाल की ? “

सोहन से अनुकूल उत्तर न मिलने पर गुरु जी मौन हो गए, लेकिन गुरु जी ने निश्चय कर लिया था, कि सोहन को दुनिया के रणांगन में विजेता बनाकर ही रहेंगे।

गुरु जी का मौन सोहन को बहुत ही त्रासित कर रहा था। गुरूजी ने सोहन से कहा, ” अगर तुम इसी तरह से अंतिम समय में कार्य प्रारम्भ करोगे तो कभी प्रयास में सफल नहीं होंगे।  किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए एकदम सही समय पर ही कार्य आरम्भ करना चाहिए।  अगर समय पर कार्य आरम्भ करोगे तो निश्चय ही सफल होंगे।

गुरूजी के बातों का सोहन पर बहुत असर हुआ। वह युक्ति में लगा था कि फिर से हमें गुरु जी की अनुकम्पा कैसे प्राप्त हो ? सोहन की इच्छा  के अनुसार यह अवसर जल्द ही प्राप्त हो गया।

गुरु जी ने पुनः पूर्णवत सोहन को जिम्मेदारी देकर सभी शिष्यों के साथ दस दिन के लिए अन्यत्र प्रस्थान किये। सोहन तो जैसे इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था, और गुरूजी भी यह देखना चाहते थे कि सोहन पर उनकी बातों का कितना असर हुआ।

सोहन  पहले दिन से ही परिश्रम करना शुरू कर दिया। फलतः आश्रम की काया पलट गई। गुरु जी आगमन हुआ। सोहन पूर्व की भांति गुरु और गुरु भाइयों का स्वागत किया। गुरु जी आश्रम और पुष्प वृक्षों की तरफ देखा तो उन्हें अपार संतुष्टि हुई। वह बहुत खुश हुए।

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