व्यक्तित्व के सिद्धान्त और उनके प्रतिपादक

मनोवैज्ञानिकों के लिए हमेशा से ही व्यक्तित्व का अध्ययन और उसके सिद्धान्तों का विश्लेषण करना बहुत ही मुश्किल काम रहा है, क्योंकि व्यक्ति का व्यक्तित्व के निर्धारण में अनेकों कारकों का योगदान होता है। वैयक्तिक धारणाओं के आधार पर ही व्यक्तित्व सम्बन्धी सिद्धान्तों का निरूपण हुआ है। यदि आपने व्यक्तित्व की विशेषताएं और व्यक्तित्व का वर्गीकरण नही पढ़ा है तो नीचे दी गई लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।
व्यक्तित्व का वर्गीकरण
व्यक्तित्व की विशेषताएँ

व्यक्तित्व के सिद्धान्त और उनके प्रतिपादक

यहाँ पर व्यक्तित्व के कई सिद्धान्तों में से कुछ प्रमुख सिद्धान्तों के बारे में बताया गया है। व्यक्तित्व के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं–

फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त

फ्रायड के अनुसार, व्यक्तित्व का निर्माण इड्, इगो तथा सुपर इगो के द्वारा होता है। इड्, अचेतन मन हैं, जिसमें मूल प्रवृत्तियाँ एवं नैसर्गिक इच्छाएँ रहती हैं। ये शीघ्र तृप्ति चाहती हैं। इगो चेतना, इच्छा – शक्ति, बुद्धि तथा तर्क हैं। सुपर इगो आदर्शो से निर्मित होता है। फ्रायड ने इगो के विषय में कहा है–

इगो, इड् का वह भाग है जो बाह्य संसार के अनुमान तथा सम्भावना से परिष्कृत होता है और उसका कालान्तर में प्रभाव भी पड़ता है, जो प्राणी को उद्दीपन करने एवं उसके इर्द – गिर्द जमी परत के अंश के रूप में व्याप्त रहता है–फ्रायड

इसी प्रकार फ्रायड ने सुपर इगो के विषय में कहा है–

सुपर इगो, इगो का वह पक्ष है जो आत्म – निरीक्षण की प्रक्रिया को सम्भव बनाता है, जिसे सामान्य रूप में चेतना कहते हैं।–फ्रायड

शैलडॉन का रचना सिद्धान्त

मनोवैज्ञानिक शैलडॉन ने व्यक्तित्व के तीन प्राथमिक आधार बताए हैं, जो कि निम्नलिखित हैं–
गोलाकृति- इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले मनुष्य गोल गर्दन तथा माँसपेशियों से पूर्ण विकसित होते हैं, और चर्बी का बढ़ना आदि गुणों से युक्त होतें हैं।

आयताकृति इस प्रकार के व्यक्तित्व में हड्डियों तथा माँसपेशियों का विकास परिलक्षित होता 3 . लम्बाकृति इस प्रकार के व्यक्तित्व में केन्द्रीय स्नायु संस्थान के माँसपेशीय तन्तु विकसित होते हैं। इस मत के अनुसार शरीर के विभिन्न अंगों को व्यक्तित्व के निर्माण का आधार माना जाता है

आर. बी. कैटल का प्रतिकारक प्रणाली सिद्धान्त

इस मत के प्रतिपादक आर . बी . कैटल हैं। व्यक्तित्व के विषय में इनका कथन है व्यक्ति जो किसी विशेष परिस्थिति में जो भी कार्य करता है, उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व हैं। कैटल ने चरित्र को अनेक कारकों से युक्त बताया है। उनके अनुसार – चरित्र की सुन्दरता अर्थात्, भावात्मक एकता, सामाजिकता, कल्पनाशीलता, अभिप्रेरक, उत्सुकता, लापरवाही आदि प्रतिकारक चरित्र का निर्माण करते हैं। कैटल ने आगे कहा है कि एक आन्तरिक मनोदैहिक स्थिति जो व्यक्ति को प्रतिक्रिया ( अवधान, अभिज्ञान ) करने की अनुज्ञा देती है, वह भी उद्देश्यों के वर्गों से, विशेष संवेगों के अनुभव प्राप्त करती है एवं कार्यों को पूर्ण रूप से करने के लिए अभिप्रेरित करते हैं। इसके अतिरिक्त इन प्रतिमानों में ऐसे व्यवहार को प्राथमिकता दी जाती है, जो कि उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं।

ऑलपोर्ट का सिद्धान्त

गोर्डन डब्ल्यू . ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में, जो सिद्धान्त प्रतिपादित किया है, वह वंशक्रम तथा वातावरण, वैयक्तिक भेद आदि पर आधारित हैं। ऑलपोर्ट ने वंशक्रम द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व के जटिल मिश्रण के प्रति न्याय करने, स्वभाव, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के प्रति न्याय करने पर बल दिया है। साथ ही व्यक्तित्व की नवीनता को मान्यता देने पर भी बल दिया है, जो अनेक सम्प्रदायों तथा व्यक्तित्वों में विद्यमान होती है। व्यक्तित्व को निर्धारित करने वाली प्रवृत्तियों, विशेषताओं तथा वातावरण के प्रति समायोजन से व्यक्तित्व का निर्धारण होता है

मुर्रे का सिद्धान्त

एच. ए. मुर्रे ने व्यक्तित्व के सन्दर्भ में कहा है व्यक्तित्व कार्यात्मक रूप एवं शक्तियों की निरन्तरता है, जो संगठित प्रक्रिया के रूप में जन्म से मृत्यु तक बहिर्मुखी होकर प्रकट होती है। इस मत के अनुसार कार्यात्मक रूपों की निरन्तरता ऋणात्मक तथा धनात्मक अभिनिवेश सम्बन्ध, मतभेद, सक्रियता, निष्क्रियता आदि का योग कर व्यक्तित्व का निर्माण करती है। इस मत पर कतिपय आरोप भी हैं, जैसे – अचेतन निर्धारकों का व्यवहार पर प्रभाव, अधिगम की भूमिका, अभिप्रेरणा की स्थिति व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है और उसकी अभिव्यक्ति का कारण बनती है।

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