मूल्यांकन की प्रविधियाँ और मूल्यांकन के प्रकार की पूरी जानकारी

इस पोस्ट पर हम आपको मूल्यांकन की प्रविधियां या प्रकार के बारे में बतायें। मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य शिक्षार्थी के ज्ञान का अवलोकन करना है। शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को केवल ज्ञान देना ही नहीं है, बल्कि छात्रों का सर्वांगीण विकास भी करना है।

शिक्षा वस्तुतः उपलब्धि केन्द्रित न होकर विकास केन्द्रित है। छात्रों के माता-पिता, शिक्षक, अभिभावक सभी के लिए यह जानना आवश्यक है कि बच्चे का समुचित विकास हो रहा या नहीं, लेकिन कैसे जानेंगे कि बच्चे का समुचित विकास हो रहा या नहीं हो रहा है। मूल्यांकन के द्वारा इस दिशा में मदद मिलती है कि छात्र का विकास हुआ है, अथवा नहीं हुआ है। इस प्रकार शिक्षण प्रक्रिया में मूल्यांकन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

मूल्यांकन की प्रविधियां या मूल्यांकन के प्रकार :-

मूल्यांकन एक सतत (निरंतर चलने वाली) सकारात्मक प्रक्रिया है जो शिक्षा के उद्देश्यों की सीमा निर्धारित करके शिक्षा प्राप्ति के स्तर को जानकर कर उचित-अनुचित निर्णय लेने में सहायता करती है। इसलिए लिए छात्रों के शिक्षा के स्तर का मूल्यांकन करने के लिए परीक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है। छात्रों के मूल्यांकन करने के लिए हम शिक्षा को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं–
1. परिमाणात्मक मूल्यांकन
2. गुणात्मक मूल्यांकन

परिणात्मक मूल्यांकन :-

परिमाणात्मक मूल्यांकन को भी हम छात्रों की परीक्षा के तरीकों के आधार पर तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं–
1. मौखिक परीक्षा
2. लिखित परीक्षा
3. प्रायोगिक परीक्षा

मौखिक परीक्षा :-

मौखिक परीक्षा का सर्वप्रथम उपयोग ग्लेडाइड्स ने शुरू किया था। मौखिक परीक्षा को यूनान के महान दार्शनिक और पश्चिमी दर्शन के जनक सुकरात ने भी महत्वपूर्ण स्थान दिया था। छात्र के ज्ञान के मूल्यांकन की यह विधि मुख्यतः व्यक्तिगत होती मतलब छात्र को अकेले बुलाकर उससे प्रश्न पूंछे जाते हैं।

इसमें छात्र से मौखिक रूप से प्रश्न करके उसके ज्ञान, अभिव्यक्ति की क्षमता और उसके आत्मविश्वास को परखा जाता है। मौखिक प्रश्न पूछते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए-

  • लम्बे उत्तरों वाले प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए
  • प्रश्न में द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए
  • छात्रों को उत्तर देते समय, बीच में नहीं टोकना चाहिए
  • लम्बी शब्दावली वाले प्रश्नों से बचना चाहिए

लिखित परीक्षा :-

वर्तमान समय में लिखित परीक्षाओं के माध्यम से मूल्यांकन का प्रचलन सबसे अधिक है। इस परीक्षा में चार प्रकार के प्रश्नों को पूंछा जा सकता है–
1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
2. अति लघुउत्तरीय प्रश्न
3. लघु उत्तरीय प्रश्न
4. दीर्घ उत्तरीय या निबन्धात्मक प्रश्न

प्रायोगिक परीक्षा :-

मूल्यांकन में प्रयोग विधि का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा का उद्देश्य ही है कि बच्चे कुछ करके सीखें। प्रायोगिक मूल्यांकन को दो भागों में बाँटा जा सकता है।

1. आन्तरिक प्रयोग :-

जब किसी सूत्र या अवधारणा को प्रयोगशाला में सामग्री, उपकरण की सहायता से छात्र द्वारा सिद्ध किया जाता है, जिससे उसकी सफलता-असफलता का मूल्यांकन किया जाता है। इसे आन्तरिक मूल्यांकन कहते हैं। यह अधिकतर विज्ञान विषय में किया जाता है।

2. बाह्य प्रयोग :-

इस प्रकार के मूल्यांकन को छात्र के जीवन से जोड़कर ज्ञान, सिद्धान्त को व्यवहार रूप में परिवर्तित करने को कहा जाता है जैसे- कुछ दूरी दौड़ना, सत्य बोलना, चित्र बनाना, मिट्टी का कार्य करना आदि। यह मूल्यांकन शारीरिक शिक्षा, गृह विज्ञान, कला, नैतिक शिक्षा, कृषि विज्ञान आदि विषयों में किया जाता है।


गुणात्मक मूल्यांकन :-

गुणात्मक मूल्यांकन को हम निम्नलिखित चार भागों में विभाजित कर सकते हैं–
1. जाँच की सूची और स्तर माप
2. अवलोकन या निरीक्षण
3. घटनावृत्त
4. साक्षात्कार

जाँच सूची और स्तर माप :-

जाँच सूची का उपयोग छात्र के प्रयोगात्मक ज्ञान, अभिवृत्तियों, रूचियों, अवधारणाओं और मूल्यों आदि के सम्बन्ध में उपलब्धियों का पता लगाने के उद्देश्य से किया जाता है। जबकि स्तर माप के माध्यम से यह जाना जाता है कि किसी छात्र के कुछ विशिष्ट गुणों ने अन्य छात्र एवं शिक्षकों पर क्या प्रभाव डाला है।

अवलोकन या निरीक्षण :-

किसी व्यक्ति या समूह के व्यवहार को कुछ निश्चित समय के लिए देखना और उसके व्यवहार के कुछ बिंदुओं को दर्ज करना अवलोकन है। अवलोकन को सही तरीके से दर्ज करने के लिए अवलोकनकर्ता, चैकलिस्ट, अवलोकन चार्ट, मापनी परीक्षण आदि उपकरणों का प्रयोग करता है।

घटनावृत्त :-

घटनावृत्त शिक्षार्थियों के जीवन की सार्थक घटना का विवरण या कोई ऐसी घटना जो अवलोकन करने वाले की दृष्टि में शिक्षार्थियों के लिए महत्वपूर्ण हो या शिक्षक के द्वारा अनुभव किया गया विभिन्न परिस्थितियों में शिक्षार्थियों का वास्तविक व्यवहार हो सकता है।

साक्षात्कार :-

साक्षात्कार विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में व्यक्तियों से सूचना संकलन का सर्वाधिक प्रचलित साधन है। साक्षात्कार में व्यक्तियों को आमने-सामने बैठाकर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। उनके आधार पर उनकी योग्यताओं का मूल्यांकन किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का मापन करने के लिए किए जाने वाले साक्षात्कार को मौखिकी के नाम से जाना जाता है।

पढ़िये मूल्यांकन का अर्थ, परिभाषा और महत्व || मूल्यांकन के सोपान और उद्देश्य


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