गीता तृतीय अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 3 with Hindi and English Translation

गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २३

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥३-२३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि हे पार्थ! यदि मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं॥23॥

-: English Meaning :-

For, should I not ever engage in action, unwearied, men would in all matters follow My path, O son of Pritha.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २४

उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
संकरस्य च कर्ता स्यामु पहन्यामिमाः प्रजाः॥३-२४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ॥24॥

-: English Meaning :-

These worlds would be ruined if I should not perform action; I should be the cause of confusion of castes and should destroy these creatures.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २५

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्त श्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम्॥३-२५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे भारत! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्तिरहित विद्वान भी लोकसंग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे॥25॥

-: English Meaning :-

As ignorant men act attached to work, O Bharata, so should the wise man act, unattached from a wish to protect the masses.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २६

न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम्।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्॥३-२६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

ज्ञानी पुरुष शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि को भ्रमित न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भली-भाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥26॥

-: English Meaning :-

Let no wise man cause unsettlement in the minds of the ignorant who are attached to action; he should make them do all actions, himself fulfilling them with devotion.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २७

प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥३-२७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, तो भी अहंकार से मोहित अन्तःकरण वाला अज्ञानी ‘मैं कर्ता हूँ’, ऐसा मानता है॥27॥

-: English Meaning :-

Actions are wrought in all cases by the energies of Nature. He whose mind is deluded by egoism thinks ‘I am the doer’.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – २८

तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते॥३-२८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

परन्तु हे महाबाहो! गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी सम्पूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं, ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता। ॥28॥

-: English Meaning :-

But he who knows the truth, O mighty-armed, about the divisions of the energies and (their) functions, is not attached, thinking that the energies act upon the energies.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक -२९

प्रकृतेर्गुणसंमूढाः सज्जन्ते गुणकर्मसु।
तानकृत्स्नविदो मन्दान् कृत्स्नविन्न विचालयेत्॥३-२९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझने वाले मन्दबुद्धियों को ज्ञानी विचलित न करे॥29॥

-: English Meaning :-

Those deluded by the energies of Nature are attached to the functions of the energies. He who knows the All should not unsettle the unwise who know not the All.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३०

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥३-३०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर (तुम) युद्ध करो॥30॥

-: English Meaning :-

Renouncing all action in Me, with thy thought resting on the Self, being free from hope, free from selfishness, devoid of fever, do thou fight.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३१

ये मे मतमिदं नित्यम नुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः॥३-३१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं॥31॥

-: English Meaning :-

Men who constantly practice this teaching of Mine with faith and without caviling, they too are liberated from actions.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३२

ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः॥३-३२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

परन्तु जो मनुष्य मुझमें दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार नहीं चलते हैं, उन मूर्खों को तुम सभी ज्ञानों में मोहित और नष्ट हुए ही समझो॥32॥

-: English Meaning :-

But those who, carping at this, My teaching, practice it not – know them as deluded in all knowledge, as senseless men doomed to destruction.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३३

सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥३-३३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सभी प्राणी और ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करते हैं और प्रकृति को ही प्राप्त होते हैं फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा॥33॥

-: English Meaning :-

Even the man of knowledge acts in conformity with his own nature; (all) beings follow (their) nature; what shall coercion avail?


गीता तृतीय अध्याय श्लोक -३४

इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥३-३४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

प्रत्येक इन्द्रिय और उसके विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं। मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिए क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले महान्‌ शत्रु हैं॥34॥

-: English Meaning :-

Love and hate lie towards the object of each sense; let none become subject to these two; for, they are his enemies.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३५

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३-३५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है॥35॥

-: English Meaning :-

Better one’s own duty, though devoid of merit, than the duty of another well discharged. Better is death in one’s own duty; the duty of another is productive of danger.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३६

अर्जुन उवाच
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥३-३६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अर्जुन बोले- हे कृष्ण! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात्‌ लगाए हुए की भाँति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है॥36॥॥

-: English Meaning :-

Arjun says – But by what dragged on, O Varshneya, does a man, though reluctant, commit sin, as if constrained by force?


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३७

श्रीभगवानुवाच काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥३-३७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान बोले- रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है। इसको ही तू इस विषय में वैरी जान॥37॥

-: English Meaning :-

The Lord says – It is desire, it is wrath, born of the energy of Rajas, all-devouring, all sinful; that, know thou, is the foe here.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३८

धूमेनाव्रियते वह्नि र्यथादर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस् तथा तेनेदमावृतम्॥३-३८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढँका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढँका रहता है, वैसे ही उस काम द्वारा यह ज्ञान ढँका रहता है॥38॥

-: English Meaning :-

As fire is surrounded by smoke, as a mirror by rust, as the foetus is enclosed in the womb, so is this covered by it.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ३९

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा।
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च॥३-३९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

और हे अर्जुन! ज्ञानियों के नित्य वैरी इस अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढँका हुआ है॥39॥

-: English Meaning :-

Covered, O son of Kunti, is wisdom by this constant enemy of the wise, in the form of desire, which is greedy and insatiable.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ४०

इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।
एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्॥३-४०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि- ये सब इसके वासस्थान कहे जाते हैं। यह काम इन मन, बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है। ॥40॥

-: English Meaning :-

The senses, mind and reason are said to be its seat; veiling wisdom through these, it deludes the embodied.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ४१

तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्॥३-४१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इसलिए हे अर्जुन! तुम पहले इन्द्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डालो॥41॥

-: English Meaning :-

Therefore, O lord of the Bharatas, restrain the senses first, do thou cast off this sinful thing which is destructive of knowledge and wisdom.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ४२

इन्द्रियाणि पराण्याहु रिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥३-४२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इन्द्रियाँ स्थूल शरीर से श्रेष्ठ हैं, इन इन्द्रियों से श्रेष्ठ मन है, मन से भी श्रेष्ठ बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त श्रेष्ठ है, वह आत्मा है॥42॥

-: English Meaning :-

They say that the senses are superior; superior to the senses is mind; superior to mind is reason; one who is even superior to reason is He.


गीता तृतीय अध्याय श्लोक – ४३

एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् ॥३-४३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस प्रकार बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तुम इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डालो॥43॥

-: English Meaning :-

Then knowing Him who is superior to reason, subduing the self by the self, slay thou, O mighty-armed, the enemy in the form of desire, hard to conquer.


गीता तृतीय अध्याय समाप्त

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मयोगो नाम तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥

-: हिंदी भावार्थ :-

ॐ तत् सत् ! इस प्रकार ब्रह्मविद्या का योग करवाने वाले शास्त्र, श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषत् में श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद रूपी कर्मयोग नाम वाला तृतीय अध्याय सम्पूर्ण हुआ॥

-: English Meaning :-

Om That is Truth! This completes the third chapter of Srimadbhagwad Gita, an Upanishat to unify one with Lord. Third chapter depicts the conversation between Sri Krishna and Arjun, and is named as “Yoga of Action”.


गीता चतुर्थ अध्याय अर्थ सहित

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