गीता द्वितीय अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 2 with Hindi and English Translation

गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ५५

श्रीभगवानुवाच प्रजहाति यदा कामान्‌ सर्वान्पार्थ मनोगतान्‌।
आत्मयेवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते॥२-५५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान्‌ बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और मन से आत्म-स्वरुप का चिंतन करता हुआ उसी में संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है॥55॥

-: English Meaning :-

The Lord says – O Arjun! When a man completely gives up all the desires in his mind and remains satisfied within himself, then he is said to be of steady intellect.॥55॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ५६

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥२-५६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में सर्वथा निःस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिर-बुद्धि कहा जाता है॥56॥

-: English Meaning :-

Whose mind is not distressed in calamities, who does not long(wish) for pleasures, who is free from attachment, fear and anger, such a sage is called a man of steady intellect.॥56॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ५७

यः सर्वत्रानभिस्नेहस् तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्‌।
नाभिनंदति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥२-५७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो पुरुष सर्वत्र स्नेहरहित हुआ यदृछ्या(प्रारब्धवश) प्राप्त शुभ या अशुभ से न प्रसन्न होता है और न द्वेष करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है॥57॥

-: English Meaning :-

Who is without attachment anywhere, is satisfied with whatever he gets good or bad, neither likes or dislikes, his intellect is steady.॥57॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ५८

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गनीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस् तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥२-५८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जैसे कछुवा अपने अंगों को सब ओर से समेट लेता है, वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों को इन्द्रियों के विषयों से सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर है॥58॥

-: English Meaning :-

Just as a tortoise withdraws its limbs from all sides at will, when a man completely withdraws his senses from the sense-objects, his intellect is said to be established.॥58॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ५९

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते॥२-५९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इन्द्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, परन्तु उनमें रहने वाली आसक्ति निवृत्त नहीं होती। इस स्थितप्रज्ञ पुरुष की तो आसक्ति भी परमात्मा का साक्षात्कार करके निवृत्त हो जाती है॥59॥

-: English Meaning :-

Any man can momentarily withdraw his senses from the sense-objects but attachment for them still remains. But for a man of steady intellect, even the attachment for sense-objects is destroyed after seeing the Supreme(Lord).॥59॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक -६०

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चितः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः॥२-६०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे अर्जुन! (आसक्ति का नाश न होने के कारण) यत्न करते हुए बुद्धिमान पुरुष के मन को भी ये इन्द्रियाँ बलात्‌ हर लेती हैं॥60॥

-: English Meaning :-

O son of Kunti! (If this attachment is not destroyed) the senses, forcibly capture the mind of a wise man, even while trying (to control them).॥60॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६१

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥२-६१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इसलिए साधक उन सारी इन्द्रियों को वश में करके समाहित चित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है॥61॥

-: English Meaning :-

So a seeker should restrain all his senses and meditate with focus on Me(the Supreme Lord). Because if a man controls his senses, his intellect becomes steady by itself.॥61॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६२

ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥२-६२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है॥62॥

-: English Meaning :-

When a man constantly thinks of sense-objects, he becomes attached to them. From attachment arises their desire and unfulfilled desire gives rise to anger.॥62॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६३

क्रोधाद्‍भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥२-६३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़ भाव से स्मृति-भ्रंश हो जाता है, स्मृति-भ्रंश हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है॥63॥

-: English Meaning :-

From anger arises delusion; delusion gives rise to broken memory(of Self); broken memory destroys the intellect and on loss of intellect this man falls from his steady position(in Self).॥63॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६४

रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्‌।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति॥२-६४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अपने वश में किये हुए अन्तःकरण वाला साधक, नियंत्रित और राग-द्वेष रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ भी अन्तःकरण की निर्मलता को प्राप्त होता है॥64॥

-: English Meaning :-

A seeker, who has control over his mind and senses, who is devoid of liking and disliking, attains the stainless mind even while observing sense-objects.॥64॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६५

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते॥२-६५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अन्तःकरण निर्मल होने पर इसके सभी दुःखों का नाश हो जाता है और उस प्रसन्न-चित्त वाले उस कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर हो जाती है॥65॥

-: English Meaning :-

An stainless mind puts an end to all his miseries and due to serenity of mind, his intellect becomes steady very soon.॥65॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक -६६

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयतः शान्तिर शान्तस्य कुतः सुखम्‌॥२-६६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

योग-रहित पुरुष की निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती और उस अयुक्त पुरुष में(आत्म-विषयक) भावना भी नहीं होती। भावनाहीन मनुष्य को शान्ति नहीं मिलती और अशांत मनुष्य को सुख कहाँ?॥66॥

-: English Meaning :-

There is no single-mindedness of intellect in a man devoid of this Yoga. He also lacks contemplation on Self. Such a non-meditative man does not attain peace. And without peace, how can there be unending joy?॥66॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६७

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि॥२-६७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों से संयुक्त होकर मन बुद्धि को वैसे ही हर लेता है जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु॥67॥

-: English Meaning :-

Because mind captures the senses attached to sense-objects just like the wind seizes a ship moving on water.॥67॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ६८

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस् तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥२-६८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इसलिए हे महाबाहो! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ, इन्द्रियों के विषयों में सब प्रकार से निग्रह की(रोकी) हुई हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है॥68॥

-: English Meaning :-

Therefore, O mighty-armed! He who has properly controlled his senses from attachment in all sense-objects, his intellect is steady.॥68॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक -६९

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥२-६९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आत्म-विषयक जो बुद्धि सम्पूर्ण प्राणियों के लिए रात्रि के समान(अज्ञात) है, उस आत्म-विषयक बुद्धि में जितेन्द्रिय पुरुष जागता है और जिस अनात्म-विषयक बुद्धि में सब प्राणी जागते हैं, उस मुनि के लिए वह रात्रि के समान है॥69॥

-: English Meaning :-

This steady intellect about Self is unknown (like a night without light) to all beings. A stoic person (one with controlled sense) knows(wakes in this night) Self with this (light of)steady intellect .Where all beings are awake, that is the night for such seer.॥69॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ७०

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्‌।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥२-७०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जैसे सब ओर से परिपूर्ण, अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में (अनेक नदियों के जल) उसमें क्षोभ न उत्पन्न करते हुए समा जाते हैं, वैसे ही जिस पुरुष में सब भोग बिना किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए समा जाते हैं, वही पुरुष शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं॥70॥

-: English Meaning :-

A man who remains unperturbed by various desires like a steady and vast ocean which stays unaffected of entering waters from all sides; attains eternal peace. And not the man who desires sense-objects.॥70॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ७१

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति॥२-७१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर, ममतारहित, अहंकाररहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वह शांति को प्राप्त होता है॥71॥

-: English Meaning :-

That man attains peace, who gives up all his desires, is without any craving, is unattached and without pride.॥71॥


गीता द्वितीय अध्याय श्लोक – ७२

एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥२-७२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे अर्जुन! यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, इसको प्राप्त होकर मनुष्य फिर कभी मोहित नहीं होता और अंतकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है॥72॥

-: English Meaning :-

O Patha! This is the state of those who have attained Brahm. Having attained this, there is no further delusion for man. Even if, this state is attained during death, one attains bliss that is Brahman!॥72॥


गीता तृतीय अध्याय अर्थ सहित

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