गीता पंद्रहवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 15 with Hindi and English Translation

गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् ।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः ॥१५-११॥

-: हिंदी भावार्थ :-

यत्न करने वाले योगीजन भी अपने हृदय में स्थित इस आत्मा को तत्त्व से जानते हैं, किन्तु जिन्होंने अपने अन्तःकरण को शुद्ध नहीं किया है, ऐसे अज्ञानीजन तो यत्न करते रहने पर भी इस आत्मा को नहीं जानते॥11॥

-: English Meaning :-

Those who strive, endued with Yoga, perceive Him dwelling in the self; though striving, those of unrefined self, devoid of wisdom, perceive Him not.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥१५-१२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

सूर्य में स्थित जो तेज सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और जो अग्नि में है- उसको तू मेरा ही तेज जान॥12॥

-: English Meaning :-

That light which residing in the sun illumines the whole world, that which is in the moon and in the fire, that light do thou know to be Mine.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥१५-१३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

और मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्ति से सब भूतों को धारण करता हूँ और रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण ओषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ॥13॥

-: English Meaning :-

Penetrating the earth I support all beings by (My) Energy; and having become the watery moon I nourish all herbs.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥१५-१४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य, ऐसे चार प्रकार के अन्न होते हैं, उनमें जो चबाकर खाया जाता है, वह ‘भक्ष्य’ है- जैसे रोटी आदि। जो निगला जाता है, वह ‘भोज्य’ है- जैसे दूध आदि तथा जो चाटा जाता है, वह ‘लेह्य’ है- जैसे चटनी आदि और जो चूसा जाता है, वह ‘चोष्य’ है- जैसे ईख आदि) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ॥14॥

-: English Meaning :-

Abiding in the body of living beings as Vaisvanara, associated with Prana and Apana, I digest the four fold food.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

सर्वस्य चाहं हृदि संनिविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥१५-१५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (विचार द्वारा बुद्धि में रहने वाले संशय, विपर्यय आदि दोषों को हटाने का नाम ‘अपोहन’ है) होता है और सब वेदों द्वारा मैं ही जानने योग्य (सर्व वेदों का तात्पर्य परमेश्वर को जानने का है, इसलिए सब वेदों द्वारा ‘जानने के योग्य’ एक परमेश्वर ही है) हूँ तथा वेदान्त का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ॥15॥

-: English Meaning :-

And I am seated in the hearts of all; from Me are memory, knowledge, as well as their loss; it is I who am to be known by all the Vedas, I am indeed the author of the Vedanta as well as the knower of the Vedas.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥१५-१६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इस संसार में नाशवान और अविनाशी भी ये दो प्रकार के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण भूतप्राणियों के शरीर तो नाशवान और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है॥16॥

-: English Meaning :-

There are these two beings in the world the perishable and the imperishable; the perishable comprises all creatures, the immutable is called the imperishable.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः ।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः ॥१५-१७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अन्य ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर और परमात्मा- इस प्रकार कहा गया है॥17॥

-: English Meaning :-

But distinct is the Highest Spirit spoken of as the Supreme Self, the indestructible Lord who penetrates and sustains the three worlds.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यस्मात्क्षरमतीतो ऽहमक्षरादपि चोत्तमः ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प् रथितः पुरुषोत्तमः ॥१५-१८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि मैं नाशवान जड़वर्ग- क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ॥18॥

-: English Meaning :-

Because I transcend the perishable and am even higher than the imperishable, therefore am I known in the world and in the Veda as ‘Purushottama’, the Highest Spirit.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ॥१५-१९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

भारत! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्व से पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है॥19॥

-: English Meaning :-

He who, un-deluded, thus knows Me, the Highest Spirit, he, knowing all, worships Me with his whole being, O Bharata.


गीता पंद्रहवाँ अध्याय श्लोक –

इति गुह्यतमं शास्त्र मिदमुक्तं मयानघ ।
एतद्‌बुद्ध्वा बुद्धिमान् स्यात्कृतकृत्यश्च भारत ॥१५-२०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे निष्पाप अर्जुन! इस प्रकार यह अति रहस्ययुक्त गोपनीय शास्त्र मेरे द्वारा कहा गया, इसको तत्त्व से जानकर मनुष्य ज्ञानवान और कृतार्थ हो जाता है॥20॥

-: English Meaning :-

Thus, this most Secret Science has been taught by Me, O sinless one; on knowing this, (a man) becomes wise, O Bharata and all his duties are accomplished.


गीता चौदहवाँ अध्याय अर्थ सहित

3 thoughts on “गीता पंद्रहवाँ अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 15 with Hindi and English Translation”

  1. बहुत अच्छा लगा। गीता ज्ञान से भरा हुआ है। गीता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ही साकार ब्रह्म के रूप में इस धरती पर भारत भूमि पर अवतरित हुए थे। भगवान एक देशीय एक कालीय युद्ध करने कराने वाला कैसे हो सकता है। भगवान अग्यात अदृश्य रूप में और ज्ञात साकार सशरीर ऐतिहासिक पुरुष के रूप में है तो संसार में तो पाप गड़बड़ी सदा ही है।आज क्यों नहीं साकार सशरीर है।

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  2. Kya acche karm se mukti milti hai ek mazdoor aadmi jo anpad hai wo kaise mukti paayega mazdoor toh sirf mehnat ki roti kamata hai kya mukti ke liye gyaan zaruri hai

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