गीता ग्यारहवां अध्याय अर्थ सहित Bhagavad Gita Chapter – 11 with Hindi and English Translation

गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रं स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ॥११-१९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ॥19॥

-: English Meaning :-

I see Thee without beginning, middle or end, infinite power, of manifold arms; the sun and the moon being Thy eyes, the burning fire Thy face; heating the whole Universe with Thy radiance.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदं लोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन् ॥११-२०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे महात्मन्‌! यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का सम्पूर्ण आकाश तथा सब दिशाएँ एक आपसे ही परिपूर्ण हैं तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर तीनों लोक अतिव्यथा को प्राप्त हो रहे हैं॥20॥

-: English Meaning :-

This space betwixt heaven and earth and all the quarters are filled by Thee alone. Having seen This, Thy marvelous and awful form, the three worlds are trembling, O High-soul Being.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

अमी हि त्वां सुरसंघा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसंघाः स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥११-२१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं॥21॥

-: English Meaning :-

In to Thee, indeed, enter these hosts of Suras; some extol Thee in fear with joined palms; May it be well! Thus saying, bands of great Rishis and Siddhas praise Thee with hymns complete.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥११-२२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जो ग्यारह रुद्र और बारह आदित्य तथा आठ वसु, साध्यगण, विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गण और पितरों का समुदाय तथा गंधर्व, यक्ष, राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं- वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं॥22॥

-: English Meaning :-

The Rudras, Adityas, Vasus and Sadhyas, Visvas and Asvins, Maruts and Ushmapas, hosts of Gandharvas, Yakshas, Asuras and Siddhas – they are all looking at Thee, all quite astonished.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहूरुपादम् ।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम् ॥११-२३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

हे महाबाहो! आपके बहुत मुख और नेत्रों वाले, बहुत हाथ, जंघा और पैरों वाले, बहुत उदरों वाले और बहुत-सी दाढ़ों के कारण अत्यन्त विकराल महान रूप को देखकर सब लोग व्याकुल हो रहे हैं तथा मैं भी व्याकुल हो रहा हूँ॥23॥

-: English Meaning :-

Having seen Thy immeasurable Form, possessed, O Mighty-armed, of many mouths and eyes, of many arms and thighs and feet, and of many stomachs and fearful with many tusks, the worlds are terrified and I also.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णं व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ॥११-२४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

क्योंकि हे विष्णो! आकाश को स्पर्श करने वाले, दैदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाए हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ॥24॥

-: English Meaning :-

On seeing Thee (Thy Form) touching the sky, blazing in many colors, with mouths wide open, with large fiery eyes, I am terrified at heart and find no courage nor peace, O Vishnu.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि ।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥११-२५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

दाढ़ों के कारण विकराल और प्रलयकाल की अग्नि के समान प्रज्वलित आपके मुखों को देखकर मैं दिशाओं को नहीं जानता हूँ और सुख भी नहीं पाता हूँ। इसलिए हे देवेश! हे जगन्निवास! आप प्रसन्न हों॥25॥

-: English Meaning :-

Having seen Thy mouths which are fearful with tusks and resemble Time’s Fires, I know not the four quarters, nor do I find peace; do Thou gracious, O Lord of Gods and Abode of the Universe!


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः ।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ॥११-२६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

वे सभी धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश कर रहे हैं और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा वह कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित सबके सब आपके दाढ़ों के कारण विकराल भयानक मुखों में बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं और कई एक चूर्ण हुए सिरों सहित आपके दाँतों के बीच में लगे हुए दिख रहे हैं॥26-27॥

-: English Meaning :-

And all the sons of Dhritarashtra, with hosts of princess, Bhisma, Drona and that son (Karna) of a charioteer, with the warrior chiefs of ours, enter hurrying into Thy mouth, terrible with tusks and fearful to behold. Some are found sticking in the gaps betwixt the teeth with their heads crushed to powder.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः ॥११-२७॥

-: हिंदी भावार्थ :-

-: English Meaning :-


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥११-२८॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं॥28॥

-: English Meaning :-

As many torrents of rivers flow direct towards the sea, so do these heroes in the world of men enter Thy flaming mouths.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ॥११-२९॥

-: हिंदी भावार्थ :-

जैसे पतंग मोहवश नष्ट होने के लिए प्रज्वलित अग्नि में अतिवेग से दौड़ते हुए प्रवेश करते हैं, वैसे ही ये सब लोग भी अपने नाश के लिए आपके मुखों में अतिवेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं॥29॥

-: English Meaning :-

As moths hurriedly rush into a blazing fire for destruction, just so do these creatures also hurriedly rush into Thy mouths for destruction.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ॥११-३०॥

-: हिंदी भावार्थ :-

आप उन सम्पूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा ग्रास करते हुए सब ओर से बार-बार चाट रहे हैं। हे विष्णो! आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत को तेज द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है॥30॥

-: English Meaning :-

Thou lick up devouring all worlds on every side with Thy flaming mouths, filling the whole world with flames. Thy fierce rays are blazing forth, O Vishnu.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥११-३१॥

-: हिंदी भावार्थ :-

मुझे बतलाइए कि आप उग्ररूप वाले कौन हैं? हे देवों में श्रेष्ठ! आपको नमस्कार हो। आप प्रसन्न होइए। आदि पुरुष आपको मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता॥31॥

-: English Meaning :-

Tell me who thou art, so fierce in form. I bow to Thee, O God Supreme; have mercy. O desire to know Thee, the original Being. I know not indeed Thy doing.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

श्रीभगवानुवाच कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥११-३२॥

-: हिंदी भावार्थ :-

श्री भगवान बोले- मैं लोकों का नाश करने वाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ। इसलिए जो प्रतिपक्षियों की सेना में स्थित योद्धा लोग हैं, वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे अर्थात तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जाएगा॥32॥

-: English Meaning :-

The Lord says- I am the mighty world-destroying Time, now engaged in destroying the worlds. Even without thee, none of the warriors arrayed in hostile armies shall live.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥११-३३॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं। हे सव्यसाचिन! (बाएँ हाथ से भी बाण चलाने का अभ्यास होने से अर्जुन का नाम ‘सव्यसाची’ हुआ था) तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा॥33॥

-: English Meaning :-

Therefore do thou arise and obtain fame. Conquer the enemies and enjoy the unrivalled dominion. By Myself have they been already slain; be thou a mere instrument, O Savyasachin.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् ।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ॥११-३४॥

-: हिंदी भावार्थ :-

द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह तथा जयद्रथ और कर्ण तथा और भी बहुत से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। निःसंदेह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिए युद्ध कर॥34॥

-: English Meaning :-

Drona and Bhisma, Jayadratha, Karna and other brave warriors – these, killed by Me, do thou kill; fear not, fight, thou shall conquer the enemies.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

सञ्जय उवाच
एतच्छ्रुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी ।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य ॥११-३५॥

-: हिंदी भावार्थ :-

संजय बोले- केशव भगवान के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर काँपते हुए नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गद्‍गद्‍ वाणी से बोले॥35॥

-: English Meaning :-

Sanjay says –
Having heard that speech of Kesava, the crowned one (Arjuna), with joined palms, trembling, prostrating himself, again addressed Krishna, stammering, bowing down, overwhelmed with fear.


गीता ग्यारहवां अध्याय श्लोक –

अर्जुन उवाच
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥११-३६॥

-: हिंदी भावार्थ :-

अर्जुन बोले- हे अन्तर्यामिन्! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं॥36॥

-: English Meaning :-

Arjun says – It is meet, O Hrishikesa, that the world is delighted and rejoices by Thy praise; Rakshasas fly in fear to all quarters and all hosts of Siddhas bow to Thee.


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